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नई दिल्ली: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने शनिवार को कहा कि उसने भारत में महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों पर हमला करने के लिए पाकिस्तान प्रायोजित अल-कायदा मॉड्यूल योजना का भंडाफोड़ किया है और दिल्ली एनसीआर सहित कई स्थानों पर आतंकी हमलों को अंजाम देने के लिए प्रेरित किया है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद और केरल के एर्नाकुलम में एक साथ छापे में शनिवार सुबह मॉड्यूल के नेता सहित नौ आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया।
प्रारंभिक जांच के अनुसार, गिरफ्तार किए गए नौ आरोपियों को सोशल मीडिया पर पाकिस्तान स्थित अल-कायदा के आतंकवादियों ने कट्टरपंथी बनाया और दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सहित कई स्थानों पर हमले करने के लिए प्रेरित किया। इस उद्देश्य के लिए, मॉड्यूल - मुर्शिदाबाद निवासी अबू सुफियान के नेतृत्व में, जो गिरफ्तार 9 में से एक है - सक्रिय रूप से धन उगाहने में शामिल था और गिरोह के कुछ सदस्य हथियार और गोला-बारूद की खरीद के लिए नई दिल्ली की यात्रा करने की योजना बना रहे थे। हथियारों को पहुंचाने के लिए कश्मीर की यात्रा की योजनाएं शामिल थीं। एनआईए ने कहा कि शनिवार की गिरफ्तारी से देश के विभिन्न हिस्सों में संभावित आतंकवादी हमले पहले से संभव हैं।
गिरफ्तार किए गए नौ आरोपियों की पहचान की गई है - मुर्शिद हसन, इयाकुब विश्वास और मोसरफ हुसैन, ये तीनों वर्तमान में एर्नाकुलम, केरल में स्थित हैं; नजमुस साकिब के अलावा, अबू सुफियान, मन्नुल मोंडल, लेउ यीन अहमद, अल मामुन कमाल और अतितुर रहमान, सभी आर / ओ मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल। केरल में गिरफ्तार लोगों में सभी नौ पश्चिम बंगाल के हैं। एनआईए ने पहले पश्चिम-बंगाल और केरल सहित भारत के विभिन्न स्थानों पर अल-कायदा के गुर्गों के एक अंतर-राज्य मॉड्यूल के बारे में सीखा था और 11 सितंबर, 2020 को इस संबंध में एक मामला दर्ज किया था। समूह महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों पर आतंकवादी हमलों की योजना बना रहा था। भारत में निर्दोष लोगों को मारने और उनके दिमाग में आतंक फैलाने के उद्देश्य से, एनआईए ने कहाकी गई नौ गिरफ्तारियों में से छह पश्चिम-बंगाल और तीन केरल की थीं। डिजिटल उपकरणों, दस्तावेजों, जिहादी साहित्य, तेज हथियार, देश-निर्मित आग्नेयास्त्रों, स्थानीय स्तर पर निर्मित शरीर कवच, घर बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले लेखों और साहित्य सहित बड़ी मात्रा में घटिया सामग्री को अपने कब्जे से जब्त कर लिया गया है। पटाखे, स्विच और बैटरी के बक्से, जो एनआईए ने कहा कि आईईडी इकट्ठा करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था, मुर्शीदाबाद में अबू सुफियान के घर से गिरफ्तार आरोपियों से बरामद किया गया था। नौ आतंकवादियों को पुलिस हिरासत और आगे की जांच के लिए केरल और पश्चिम बंगाल में संबंधित अदालतों के समक्ष पेश किया जाएगा।
दिल्ली: पिछले चार महीनों से पूर्वी लद्दाख से सटी लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल यानि एलएसी पर भारत और चीन की सेनाओं के बीच टकराव खत्म होता नहीं दिख रहा है. ऐसे में भारतीय सेना एक लंबे टकराव की तैयारी कर रही है. इसके लिए सेना ने सैनिकों को लिए 'एडवांस विंटर स्टॉक' शुरू कर दिया है.
क्योंकि पूर्वी लद्दाख के जिन इलाकों में भारतीय सेना का चीन से टकराव चल रहा है वो बेहद ही दुर्गम इलाका है और वहां तक सर्दियों के मौसम में सप्लाई लाइन को सुचारू रूप से चलाना बेहद मुश्किल काम होता है. आखिरकार भारत की सर्दियों के मौसम के लिए क्या तैयारिया हैं. ये जानने के लिए एबीपी न्यूज की टीम सेना के फॉरवर्ड सप्लाई डिपो पर पहुंची. यहां सेना के गोदामों में खाने-पीने का स्पेशल राशन से लेकर ड्राइ राशन से अटे पड़े हैं. टॉफी-चॉकलेट, बॉनबिटा से लेकर दाल, चावल, आटा, बेसन सब कुछ गोदामों में भरा पड़ा है.
एबीपी न्यूज को मिली एक्सक्लुजिव जानकारी के मुताबिक, लेह-लद्दाख में तैनात 14वीं कोर में अगले एक साल का स्टॉक पूरा कर लिया गया है. यानि अगर लेह-लद्दाख में अगले एक साल तक भी कोई सप्लाई ना हो तब भी एलएसी पर तैनात 50 हजार सैनिकों के खाने पीने का इंतजाम है. ये इसलिए मुमकिन हो पाया है क्योंकि भारतीय सेना 13 लाख सैनिकों के साथ दुनिया की दूसरी सबसए बड़ी सेना है. इतनी बड़ी सेना की जरूरतों के लिए भारत हमेशा तैयार रहता है. साफ है कि भारतीय सेना भी दुनिया की दूसरी सेनाओं की तरह है 'आर्मी मार्चेस ऑन इट्स स्टोमक' पर विश्वास करती है.
लद्दाख में सेना के ना केवल गोदाम राशन और खाने पीने से भरे पड़े हैं बल्कि फ्यूल डिपो तक फुल हैं. सेना की मूवमेंट यानि ट्रक से लेकर दूसरी गाड़ियों और सैनिकों के हीटर और खास बुखारी-अंगठियों के लिए जरूरत तेल से पूरी डिपो भरा हुआ है. सुरक्ष की दृष्टि से एबीपी न्यूज सैकड़ों एकड़ में फैल फॉरवर्ड फ्यूल डिपो को नहीं दिखा सकता, लेकिन सेना की आर्मी सर्विस कोर (एएससी) के संचालित इस डिपो से एक बार गाड़ियों के काफिले को निकालता देख इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है.
लेह स्थित 14वीं कोर के चीफ ऑफ स्टाफ, मेजर जनरल अरविंद कपूर ने एबीपू न्यूज से साफ कहा कि पिछले 20 सालों में भारतीय सेना ने लद्दाख में अपने ऑप्स-लॉजिस्टिक यानि ऑपरेशन्स से जुड़े लॉजिस्टिक की जरूरतों पर पूरी तरह से काबू कर लिया है. साथ ही अब किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है. सेना की फॉरवर्ड लोकेशन्स पर खड़ी गाड़ियों और हाईवे पर गुजरते सेना के ट्रकों को देखकर सहज अंदाजा लगाय जा सकता है कि भारत की चीन के खिलाफ कैसी तैयारियां हैं. मेजर जनरल कपूर के मुताबिक, ना केवल खाने पीने का सामान बल्कि भारतीय सेना को एम्युनिशेन-डिपो यानि गोला-बारूद भी पर्याप्त मात्रा में हैं.
एबीपी न्यूज़ इस दौरान सेना के एक वर्कशॉप पहुंचा जहां बोफोर्स तोप और एंटी एयरक्राफ्ट गन की रिपेयर चल रही थी. यानि वॉर फाइटिंग इक्युपमेंट को मिशन-कैपेबल बनाया जा रहा था. आपको बता दें कि सेना की फायर एंड फ्यूरी कोर (14वीं कोर) की ऑप्स-लॉजिस्टिक्स (ऑपरेशन-लॉजिस्टिक्स) विंग ने दूर-दराज सरहद पर तैनात सैनिकों को खाना-पीना और राशन इत्यादि को पहुंचाना शुरू कर दिया है, फिर वो कितनी ही विषम परिस्थितियां क्यूं ना हों. इसके लिए सेना की सर्विस कोर (आर्मी सर्विस कोर) से लेकर एविएशन-विंग और वायुसेना की मदद ली जा रही है.
यहां ये बताना भी जरूरी है कि सेना के लिए करगिल-द्रास से लेकर सियाचिन और पूर्वी लद्दाख में सप्लाई करना कोई नया काम नहीं है. करगिल-द्रास और सियाचिन भी उसी लद्दाख का हिस्सा हैं जहां एलएसी पर चीन से इनदिनों टकराव चल रहा है. लेकिन इस बार मुश्किल बड़ी इसलिए है क्योंकि अब पूर्वी लद्दाख में सैनिकों की संख्या दो से ढाई गुना ज्यादा है.
एक अनुमान के मुताबिक, सर्दियों के मौसम के लिए हर साल पूरे लद्दाख में तैनात पूरी एक कोर (जिसमें 30-40 हजार सैनिक होते हैं) करीब 3 हजार मैट्रिक टन राशन की जरूरत पड़ती है, ऐसे में अब ये तीन गुना बढ़ गया है. सैनिकों के राशन में पैकेड फूड, दाल, फ्रूट जूस इत्यादि रहता है. सूखा आटा, चावल, दावल, मीट भी सेना की फील्ड-फॉरमेशन्स को उनकी जरूरत के हिसाब से भेजी जाती हैं.
यहां पर ये भी समझना जरूरी है कि पूर्वी लद्दाख दुनिया के सबसे दुर्गम इलाकों में से एक है. वहां तक पहुंचने के लिए दुनिया के कम से कम तीन या चार सबसे उंचाई और खतरनाक दर्रो को पार करना पड़ता है. पूर्वी लद्दाख तक पहुंचने के लिए एक रूट है श्रीनगर और सोनमर्ग के जरिए करगिल-द्रास और लेह के जरिए. नेशनल हाईव नंबर वन (1) के जरिए यहां से पहुंचा तो जा सकता है लेकिन ये रूट दुनिया के सबसे खतरनाक दर्रे, जोजिला-पास से होकर गुजरता है.
ये रूट साल में छह महीने (अक्टूबर-मार्च) के लिए बंद रहता है. क्योंकि इस दर्रे के करीब 25-30 किलोमीटर के स्ट्रेच पर जमकर बर्फबारी होती है जिससे ये रास्ता पूरी तरह से बाकी देश से कट जाता है. बॉर्डर रोड ऑर्गेनेजाइजेशन यानि बीआरओ हर साल मार्च-अप्रैल में इस रास्ते पर जमी कई फीट उंची बर्फ को हटाकर या काटकर ये रास्ता खोलता है. तबतक ये रास्ता पूरी तरह बंद रहता है.
दूसरा रूट है कुल्लु-मनाली और रोहतांग पास से कारू पहुंचना का. लेकिन रोहतांग पास भी साल में चार-पांच महीने बंद रहता है. रोहतांग टनल पर काम जोरो-शोरो से चल रहा है ताकि ये रूट 12 महीने खुला रहे. लेकिन अभी भी इस टनल का काम पूरा नहीं हो पाया है.
लेकिन लेह और कारू तक पहुंचने के बाद भी राशन और दूसरी सप्लाई को पूर्वी लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी, डेपासांग प्लेन्स, गलवान घाटी, गोगरा और पैंगोंग-त्सो लेक से सटे फिंगर-एरिया तक पहुंचने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है. पूर्वी लद्दाख से सटे इन इलाकों तक पहुंचने के लिए दुनिया की तीसरी सबसे उंची सड़क, चांगला-पास यानि दर्रे से होकर गुजरना पड़ता है, जिसकी ऊंचाई करीब साढ़े सत्रह हजार (17,500) फीट है.
ट्रकों के जरिए सैनिकों के लिए खाने-पीने का सामान और राशन पहुंचाया जाता है. इस सड़क पर सर्दियों के मौसम में भारी बर्फ होती है और एवलांच का खतरा भी बना रहता है. ऐसे में सप्लाई को अक्टूबर के मौसम तक में ही पहुंचाने की कोशिश रहेगी. चांगला पास से आगे का सफर काफी मैदानी-क्षेत्र से होकर गुजरता है. चांगला से दुरबुक-श्योक-गलवान-डीबीओ रोड तक ट्रक आसानी से जा सकते हैं.
ऐसे ही दुरबुक से दूसरा रूट लुकुंग और पैंगोंग-त्सो लेक के लिए चला जाता है. लुकुंग से एक रास्ता फोबरांग और दुनिया की सबसे उंची सड़क, मरसिमक-ला (तिब्बती भाषा में दर्रे को ला कहते हैं) के जरिए चंग-चेनमो नदी होते हुए हॉट-स्प्रिंग के लिए चला जाता है. फोबरांग से ही एक दूसरा रास्ता फिंगर एरिया के लिए चला जाता है.
उत्तरी कमान की ऑप्स-लॉजिस्टिक लेह स्थित कोर के साथ मिलकर सेना की एविएशन विंग और वायुसेना के साथ मिलकर भी सर्दियों के मौसम में सैनिकों तक राशन, दवाई और दूसरा जरूरी सामान भी भेजता है. इसके लिए दिल्ली, चंडीगढ़ और जम्मू से वायुसेना के ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट्स में सामान लाद कर भेजा जाता है. लेह पहुंचने के बाद इस राशन को सेना और वायुसेना के हेलीकॉप्टर्स के जरिए डीबीओ, नेयोमा और फुकचे एडवांस लैंडिग ग्राउंड भेजा जा रहा है.
वहां से सेना की सर्विस कोर के जवान इस सामान को सरहद पर तैनात सैनिकों तक पहुंचा रही है. लेकिन वहां तक पहुंचना भी कोई आसान काम नहीं है. इस समय पूर्वी लद्दाख से सटी सीमावर्ती इलाकों में सैनिक 15-16 हजार फीट की ऊंचाई पर तैनात हैं. वहां तक पैदल ही खाने-पीने का सामान सैनिकों तक पहुंचाया जा रहा है.
आपको बता दें कि कुछ दिनों पहले ही एबीपी न्यूज ने अपनी खास रिपोर्ट में बताया था कि इन दुर्गम इलाकों में सैनिकों के लिए खाना-पीना और राशन सहित गोला-बारूद और सैन्य साजो सामान पहुंचाने के लिए सेना की आरवीसी कोर यानि रिमाउंटेंड एंड वेटनरी कोर डीआरडीओ की लेह स्थित, डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई ऑल्टिट्यूड रिसर्च (डीएएचआईआर) लैब में डबल-हंप बैक्ट्रियन कैमल यानि उंटों को पैट्रोलिंग से लेकर सामान उंचे पहाड़ों तक ले जाने के लिए तैयार कर रही है.
ये खास तरह के उंट लद्दाख की नुब्रा-वैली में पाए जाते हैं और यहां की जलवायु और क्षेत्र से पूरी तरह वाकिफ हैं. लेकिन इन बैक्ट्रियन उंटों की संख्या बेहद कम है. ऐसे में राजस्थान में पाए जाने वाले ऊंटों को भी डीएएचआईआर लैब में तैयार किया जा रहा है ताकि इन्हें भी सेना की मदद में तैनात किया जा सके.
लेह स्थित डीआरडीओ की ये लैब लद्दाख की जलवायु और भू-भाग के अनुसार सब्जियों और फलों की प्रजातियां तैयार करती है. ताकि इस इलाके के दूर-दराज गांवों में किसान इन्हें बड़ी मात्रा में उगा सकें और सेना की यूनिट्स तक पहुंचा सकें ताकि सैनिकों को ताजी सब्जी, फल और भरपेट खाना मिल सके. क्योंकि पुरानी कहावत है- आर्मी मार्चेस ऑन इन स्टोमक यानि सेना पेट के बल आगे बढ़ती है. अगर पेट खाली हुआ तो सैनिक जंग के मैदान में आगे नहीं बढ़ पाएंगे.
हाल ही में थलसेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने लेह-लद्दाख का दौरा किया था. इस दौरान जनरल नरवणे ने एलएसी पर चीन के खिलाफ सेना की तैयारियों का तो जायजा लिया ही साथ ही सर्दी में सैनिकों के राशन, खाने-पीने, बैरक और दूसरे लॉजिस्टिक और इंफ्रास्ट्रक्चर की भी समीक्षा की थी. ये इसलिए क्योंकि अक्टूबर से पूर्वी लद्दाख में जमकर बर्फ पड़नी शुरू हो जाएगी और तापमान माइनस (-) 40 डिग्री तक पहुंच जाएगा.
बिहार के मुख्य सचिव दीपक कुमार और पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडेय ने सभी जिलाधिकारियों और एसएसपी-एसपी के साथ वीडियो कांफ्रेंस कर लॉकडाउन का सख्ती से पालन कराने का निर्देश दिया है।
मुख्य सचिव ने अधिकारियों से कहा कि वे अपने क्षेत्र की स्थिति का आकलन बेहतर तरीके से कर सकते हैं। उन्हें पता है कि कोरोना संक्रमण लगातार बढ़ रहा है। इसे देखते हुए सरकार ने लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए राज्य में फिर से लॉकडाउन का फैसला किया है। अधिकारी इस दौरान पूरी सख्ती बरतें। आवश्यक काम से जाने वालों को बेवजह परेशान ना किया जाए, ना ही अनावश्यक घूमने वालों के प्रति नरमी दिखाई जाए। जिस मकसद के लिए लॉकडाउन लगाया गया है वह पूरा होना चाहिए।
जिनके पास अनुमति हो , उनपे नहीं बना सकते दबाव
गृह विभाग के आदेश का हवाला देकर अधिकारियों को हिदायत दी गई कि नियमों का पालन कर जो दुकानें खुल रही हैं और जिन्हें इसके लिए अनुमति है, उन पर बंदी का दबाव ना बनाएं।
इनपर लगाया गया है प्रतिबंध
-कंटेनमेंट जोन में सभी तरह की गतिविधियां प्रतिबंधित रहेंगी।
- राज्य सरकार तथा भारत सरकार के कार्यालय, अर्धसरकारी कार्यालय और सार्वजनिक निगमों के कार्यालय बंद रहेंगे। सिर्फ बिजली, पानी, स्वास्थ्य, सिंचाई, खाद्य वितरण, कृषि एवं पशुपालन विभागों को छूट दी गई है।
-राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और खेल गतिविधियां बंद रहेंगी।
- शॉपिंग मॉल भी बंद रहेंगे।
किसे मिली है छुट , जानिए
- सभी अस्पताल और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों और कार्यों को छूट दी गई है।
- फल, सब्जी, अनाज, दूध, मांस-मछली आदि के दुकानें खुली रहेंगी। हालांकि, प्रशासन इनकी होम डिलिवरी की हर संभव व्यवस्था करने की कोशिश करेगा।
- बैंक और एटीएम खुले रहेंगे।
- होटल, रेस्त्रां या ढाबे खुलेंगे, लेकिन वे केवल पैकिंग की सर्विस देंगे।
-रेल व हवाई सफर जारी रहेगा। आटो व टैक्सी पूरे राज्य में संचालित रहेंगे। जरूरी सेवाओं के लिए प्राइवेट गाड़ियों का संचालन किया जा सकता है। शेष ट्रांसपोर्ट सर्विस बाधित रहेगी।
-मोबाइल शॉप, रिपेयरिंग शॉप, गैराज, मोबाइल रिपेयरिंग शॉप खोलने की अनुमति जिला प्रशासन के स्तर पर दी जा सकेगी।
- पुलिस, सुरक्षा और आपातकालीन सेवाएं खुली रहेंगी।
- सेना, केंद्रीय सुरक्षा बल, कोषागार, सार्वजनिक उपयोगिता (पेट्रोल, सीएनजी, एलपीजी), आपदा प्रबंधन, ऊर्जा क्षेत्र, डाकघर, बैंक, एटीएम और मौसम विभाग जैसी चेतावनी देने वाली एजेंसियां लॉकडाउन से मुक्त रहेंगी।